मेरा ज्ञान सीमित है । मेरे तर्क कमज़ोर हैं । शायद मेरी तर्कशक्ति इतनी नहीं । मगर एक भाव जो मेरे मन और मेरी आत्मा में दृढ़ है वो है सही और ग़लत, न्याय और अन्याय के मध्य अंतर को पहचानने की शक्ति । कोई तर्क सत्य के अस्तित्व को मिटा नहीं सकता बल्कि तर्क सत्य तक पहुचने का साधन मात्र होता है । हो सकता है आपकी तर्कशक्ति आपका ज्ञान मुझसे अधिक हो। आप वाद के दौरान मुझे परास्त करके मेरी विचारधारा को भ्रमित और त्रुटिपूर्ण सिद्ध कर दें किन्तु मेरे सत्यबोध को हानी नहीं पहुँचा सकते । सत्य पर आधारित मेरी भावनाएं समय मात्र के लिए आहत तो हो सकती हैं किन्तु मेरा साथ नहीं छोड़ सकती । मैं तर्कहीन, अज्ञानी, अधूरा हो सकता हूँ किन्तु मेरा सत्य पूरा है ।