
उसका सवाला तो पूरा हो चुका था । मगर मेरी नज़रें तो अब भी सावली थीं। वो उलझन में थी । उसकी नज़रें बस आने के रास्ते की तरफ़ टिकी थीं । कोई भी गाड़ी नहीं आ रही थी । कभी वो अपनी चेन वाली हाथ घड़ी की तरफ़ देखती और कभी सड़क के इधर उधर नज़र दौड़ाती । वो इस उलझन में थी कि कोई गाड़ी जल्दी से आ जाए । और इधर मेरा हाल ये थे कि जैसे कोई बच्चा मासूमियत भरे लहजे में दुआएं कर रहा हो कि काश कुछ देर लिए कोई भी गाड़ी नहीं ना आए । सवाल पूछने के बाद उसने शायद एक बार भी मेरी तरफ़ नहीं देखा था । इधर मैं था कि अब कुछ और नज़र ही नहीं आ रहा था । सड़क पर दौड़ती गाड़ियों का शोर भी सुनाई नहीं दे रहा था । होश गुम हो गए थे । वो घड़ी घड़ी उलझन में अपनी उंगली पर अपनी एक ज़ुल्फ़ को , जो शायद उसने यूंही खुली छोड़ दी थी, बल दे रही थी । जैसे जैसे उसकी ज़ुल्फ़ उसकी उंगली पर उलझती जाती थी वैसे वैसे मेरा दिल भी । बल पड़ गए थे निगाहों में । उसका इंतज़ार और उलझन दोनों बढ़ रहे थे । इधर मैं था कि बिलकुल अंजान । शायद वक़्त भी रुक सा गया था । शायद किसी ने मेरे लिए सड़कें जाम करदी थी कि वो जा न सके और मैं उसे घंटों यूंही देखता रहूँ ।
अचानक हार्न की कर्कश आवाज़ कानों में पड़ी । अब उसके चहरे पर सुकून था और मेरी उलझन बढ़ रही थी । जो वक़्त अभी देर पहले ठहर सा गया था वो अब तेज़ रफ़्तार घोड़े से भी ज़्यादा तेज़ भाग रहा था । दिल की धड़कन बढ़ सी गयी थी । मैं ये भी भूल गया था कि मुझे कौन सी बस में जाना था । ये भी याद नहीं कि वो मेरी ही बस थी । भीड़ थी । बस के दरवाज़े पर लोग चढ़ने का इंतज़ार कर रहे थे। वो अपना हैंडबैग संभालें चढ़ने की कोशिश कर रही थी । मेरी दुआ अपना असर खो रही थी । वो बस जाने ही वाली थी । मेरी निगाहें जम गयी थीं । पथराई सी । एक अजब से नाउम्मीदी झलक रही थी । शायद वो जाते हुये ही पलट कर देख ले । बस चली तो धड़कन और तेज़ हुई । "प्लीज़ एक बार तो देखो" मन में बड़बड़ाया । बस तेज़ हो गयी । उसने नहीं देखा । इतनी बेरुखी । दिल बैठ गया और मैं भी ।
bohot zabardust dis chasp behtareen me se ek padh ke maza aaya
ReplyDeletethank you! :)
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