Friday, 5 May 2017

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे.......

मुझे अक्सर कम ही लोग मुतास्सिर करते हैं । मगर जो करते है वो बहुत गहरी छाप छोडते हैं । उन्हीं चंद लोगों में से एक जौन एलिया भी हैं । मेरे क़रीबी लोग बहुत अच्छे से जानते हैं कि मेरा जौन एलिया से रिश्ता किस हद तक पहुँच चुका है । ये शिद्दत इतनी ज़्यादा हो चली है कि अक्सर जौन को लेकर मेरा मज़ाक भी बनाया जाता है । मगर मुझे इसमे ख़ुशी होती है । मेरे एक दोस्त कहते हैं कि "आप जौन के साथ "तदाकार" हो चुके हैं । अब आप ख़ुद ही समझ सकते हैं मेरी हालत ।

जौन से हज़ार मुहब्बत के बावजूद , उनके बारे  मे गहराई  तक जानने  के बावजूद भी मैंने कभी जौन की शोहरत से फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं की.....ख़ैर

मैं लिखना तो कुछ और चाह रहा था मगर क्या लिखने लग गया । इस पोस्ट का टाइटल जौन के एक शेर का पहला मिसरा है । ये शेर मेरे पसंदीदा शेरों में से एक है । ये कुछ इस तरह है ...........

 "लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
यां मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है"

सर पीटने की घड़ी है । ग़म भी कभी फुर्सत हुआ करता है । जौन ने जितनी मासूमियत से इंसान के जज़्बात का इज़हार किया है उसकी मिसाल उर्दू शाएरी में कम ही  मिलती है । यां मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है ........... हाय!

मगर मेरे साथ मामला और दुश्वार है । मुश्किल ये है कि मेरे पास ग़म की फुर्सत के साथ वक़्त की फुर्सत भी है। अक्सर लोगों से जब बात की जाए तो वो ये कहते हुए पाये जाते हैं कि मैं थोड़ा बिज़ी हूँ। मगर  एक मुझसा खाली इंसान कि जिसके पास हमेशा सबके के लिए वक़्त होता है ।कभी किसी से नहीं कहता कि अभी बिज़ी हूँ बाद में मिलता हूँ  या बात करता हूँ ।कभी कभी तो ये गुमान होता है कि  मैं  दुनिया का सबसे नकारा और खाली इंसान हूँ जिसके पास सबके लिए वक़्त होता है। अक्सर ये दुआ करता हूँ कि काश मैं भी इतना "बिज़ी" हो जाऊँ कि किसी से भी बात करने या मिलने की फुर्सत न हो....और मैं भी ये कह सकूँ कि...

"लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे.............."

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